अनंत चेतना/रायपुर
राजधानी रायपुर से लगभग 250 किलोमीटर दूर महासमुंद लोकसभा क्षेत्र के गरियाबंद जिले में स्थित सुपेबेड़ा गांव किडनी की बीमारी के कारण मौतों के लिए बदनाम हो चुका है। लोकतंत्र के महापर्व में इस गांव में वीरानगी है। यहां पानी ही बड़ी कहानी है। इसमें हैवी मेटल, फ्लोराइड और आर्सेनिक की मात्रा काफी अधिक है। समस्या समाधान के लिए वर्ष 2018 में तेल नदी से पेयजल आपूर्ति का शुरू हुआ काम आधे रास्ते भी नहीं पहुंच सका। कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में काम पर ग्रहण लगा रहा। फिलहाल यहां पानी टंकी का ढांचा तैयार हो रहा है। महासमुंद संसदीय क्षेत्र में ओडिशा से सटे इस गांव में चारों तरफ मायूसी है। युवाओं की शादी नहीं हो रही है। परिणामत: पलायन बढ़ा है। … और मौतों का सिलसिला भी। लगभग 1,200 की आबादी में यहां हर वर्ष सिर्फ किडनी की बीमारी के कारण 10 लोगों की मौत हो रही है। 40 लोग डायलिसिस के भरोसे जिंदा हैं। इनमें से अधिकांश की उम्र 22 से 45 वर्ष के बीच है। सुपेबेड़ा और आसपास के नौ गांवों में मौत दबे पांव नहीं, बताकर आती है। यही कारण है कि दो वर्षों के भीतर सुपेबेड़ा गांव के 16 परिवार खेती-बाड़ी और गांव छोड़कर रायपुर, भिलाई, महासमुंद और पड़ोसी राज्य ओडिशा के विभिन्न शहरों में पलायन कर चुके हैं। पानी की समस्या गंभीर होने के कारण सुपेबेड़ा जल प्रबंधन प्रदाय योजना के तहत वर्ष 2018 में तेल नदी से पानी पहुंचाने का काम शुरू हुआ। भूपेश बघेल सरकार ने 2019 तक काम पूरा करने की घोषणा की थी।
तत्कालीन सरकार ने भुगतान नहीं किया तो ठेकेदार काम बंदकर फरार हो गया। प्रदेश में नई सरकार बनने के बाद उम्मीदें जगी है। छह माह पहले नलजल योजना के अंतर्गत टंकी का निर्माण शुरू हुआ है। गांव की सरपंच चंद्रकला मसरा बताती हैं कि विगत दो वर्षों में 20 लोगों की किडनी की बीमारी से मौत हो चुकी है। इनमें अधिकांश 22 से 45 वर्ष के थे।
युवक-युवतियों का नहीं हो पा रहा विवाह
किडनी की बीमारी की दहशत से अब सुपेबेड़ा गांव में कोई भी बेटी नहीं देना चाहता। 60 से अधिक शादी योग्य युवा निराशा में हैं। ग्रामीण त्रिलोचन सोनवानी के अनुसार पहले गांव में प्रतिवर्ष 10 से 15 शादियां होती थीं, जो अब घटकर तीन से चार रह गई हैं। युवाओं के परिवार के सामने गांव छोड़कर सपरिवार दूसरी जगह जाने की शर्त रखी जाती है। विगत माह गांव की एक बेटी शादी में आए बारातियों यहां खाना तो खाया लेकिन पानी नहीं पीया। त्रिलोचन के अनुसार गरीबों के सामने शादी की समस्या गंभीर होती जा रही है।
सुपेबेड़ावासियों को सिर्फ वाजपेयी और रमन सिंह का नाम है याद
सुपेबेड़ा के लोगों को विधायक और सांसद के नाम मालूम नहीं है। इन्हें सिर्फ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के नाम याद हैं। ग्रामीणों का कहना है कि वाजपेयी के हस्तक्षेप पर गांव की सड़कें बनी थीं। डा. रमन ने स्वच्छ पेयजल के लिए फिल्टर प्लांट लगवाया परंतु बघेल सरकार में रख-रखाव नहीं हो होने कारण वह भी बंद हो गया। सुपेबेड़ा सरपंच चंद्रकला मसरा ने कहा, सुपेबेड़ा में किडनी की बीमारी सबसे बड़ी समस्या है। तेल नदी से स्वच्छ पेयजल पहुंचाने की योजना पूरी नहीं हुई। नलजल योजना के तहत विगत छह माह से गांव में टंकी बनाई जा रही है। गांव में स्थिति चिंताजनक है।