अनंत चेतना/महाराष्ट्र :- महाराष्ट्र की राजनीती में क्रिकेट के खेल और फिल्मो के अभिनेताओ की तरह राजनेताओं के रंग बदलते हुए नजर आए है तबसे महाराष्ट्र के राजनीती में कभी भी कुछ भी हो सकता है जिसका अंदाजा नही लगाया जा सकता और यह स्पष्ट हो चूका है. निष्ठावान कार्यकर्ताओ ने आज भी बड़े नेताओ के मुताबिक कार्यकर्त्ता के दिल मिलते नजर नही आ रहे है. संपूर्ण महाराष्ट्र में राजनैतिक हलचले को लेकर जनता का विश्वास पूर्ण रूप से टूट चूका है ऐसे दिखाई पड़ता है. महाराष्ट्र में कुछ ही महीनो में चुनाव होनेवाले है लेकिन दो गठबंधन में राजनैतिक दल होने के वजह से कौन उम्मीदवार हो सकता है यह स्पष्ट नही हो रहा है.
राजनैतिक हलचले की माने तो महाराष्ट्र के राजकीय समीकरण में भाजपा और कांग्रेस ही एक ही दल है परंतु शिवसेना के दो भाग और राष्ट्रवादी के भी दो भाग हो चुके है. जिसके वजह से कार्यकर्ताओ को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. महायुती में अजित पवार के साथ ४० विधायक शामिल जब से हुए है तब से कार्यकर्ताओ का तालमेल और अनेक गुटबाजी होने की चर्चा साथ ही अनेक नेता पार्टियों को छोड़ पकड़ करते दिखाई दे रहे है. महायुती में भी नाराजगी के रंग देखे गए है उसी प्रकार महाविकास आघाडी में भी नाराजगी के सुर देखे गए है. क्या यह गठबंधन महाराष्ट्र के होनेवाले विधानसभा चुनाव में भी टिके रहेंगे यह देखना होगा.
महायुती में भाजपा बड़ा दल होने के वजह से टिकट के बटवारे को लेकर मतभेद निर्माण होंगे. महायुती में शिवसेना होने के वजह से टिकट की मांग करेगी साथ ही राष्ट्रवादी भी अब महायुती का हिस्सा बनने के बाद सभी दल के नेता विधानसभा चुनाव में लगे हुए है और खुद उम्मीदवार होने का दावा कर रहे है. महायुती में भाजपा के नेता, शिवसेना (शिंदे गुट) के नेता, राष्ट्रवादी(अजित पवार) के नेता विधानसभा टिकट का दावा पेश करते हुए विधानसभा क्षेत्र में बैठके और चुनाव के तैयारी में जुटे है. उसी प्रकार महाविकास आघाडी में भी इसी प्रकार राजनैतिक समीकरण नजर आ रहा है. महाविकास आघाडी में भी कांग्रेस सभी जगहों पर अपना सीटो का दावा कर रही है वही शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) भी अपना अनेक जगहों पर दावा कर रहे है और राष्ट्रवादी (शरद पवार) भी अनेक जगहों पर अपना दावा कर रही है.
सभी दलों के नेताओ का दावा होने के वजह से कार्यकर्त्ताओ में असमंजस की स्थिती निर्माण हो चुकी है. जिससे कार्यकर्त्ता में मतभेद जो है वह अभी भी मतभेद सुलझे नही है. कार्यकर्ताओ का मानना है की बड़े नेताओ के मिलने से क्या होता है ग्राउंड में छोटे कार्यकर्ताओ को काम करना होता है इसके लिए बड़े नेताओ के कहने पर नही बल्कि अपने क्षेत्रीय राजनीति के मुताबिक चलना होगा बड़े नेता कभी भी पार्टिया बदल देते है या फिर सरकार स्थापित कर लेते है जिससे छोटे कार्यकर्ताओ को इसका परिणाम सहन करना पड़ता है ऐसा कार्यकर्ताओं के द्वारा चर्चाओ का माहोल है.