10 ग्रामीण अस्पतालों में से केवल दो में ही चिकित्सा अधीक्षक 

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जनचेतना गोंदिया/विवेक हरिनखडे

स्वास्थ्य देखभाल सबसे महत्वपूर्ण बुनियादी सेवाओं में से एक है. लेकिन सरकार द्वारा इस सेवा की लगातार अनदेखी की जा रही है. परिणामस्वरूप जिले में कई अस्पताल इमारतें होते हुए भी मैनपावर नहीं है और सिर्फ दिखावा चल रहा है. जिले के 10 ग्रामीण अस्पतालों में से केवल दो में ही चिकित्सा अधीक्षक नियुक्त किए गए हैं. एक उपजिला अस्पताल समेत आठ अन्य ग्रामीण अस्पतालों में चिकित्सा अधीक्षक के पद खाली हैं. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले में स्वास्थ्य सेवा कैसी होगी.


गोंदिया जिले की सीमा मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्य से लगती है. इसलिए वहां के भी मरीज इलाज के लिए जिला अस्पताल आते हैं. इसके अलावा गढ़चिरोली, भंडारा जिले से भी मरीज यहां आते हैं. इसके लिए सरकार की ओर से जिले में 238 उपकेंद्र, 40 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 10 ग्रामीण अस्पताल, एक उपजिला अस्पताल, एक महिला अस्पताल, एक जिला अस्पताल और एक सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं. जिले में स्वास्थ्य संस्थानों का जाल मजबूती से बुना हुआ है. लेकिन 24 वर्ष बाद भी उन संस्थानों में कर्मियों की कमी बरकरार है. गोंदिया जिला मुख्य रूप से आदिवासी बहुल और पिछड़ा है. यहां स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने की जरूरत है. लेकिन जिले में स्वास्थ्य सेवा का मुद्दा हमेशा से ही चर्चा में रहा है. दवाओं की कमी, डाक्टरों की कमी और समय पर इलाज की कमी के अलावा, बाई गंगाबाई अस्पताल के प्रशासन और कर्मचारियों के बीच आंतरिक विवाद एक नियमित घटना बन गई है. शासकीय मेडिकल कॉलेज में 500 बेड हैं. वहां बेड उपलब्ध करा दी गई है. लेकिन डाक्टरों और नर्सों के सैकड़ों पद अभी भी खाली हैं. जिनकी मरीजों की देखभाल के लिए आवश्यकता होती है. इसका सीधा असर मरीजों की देखभाल पर पड़ता है. एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि जिले के 10 में से 8 ग्रामीण अस्पतालों में चिकित्सा अधीक्षक नहीं है. यहां तक कि एक उपजिला अस्पताल में भी चिकित्सा अधीक्षक नहीं है. नवेगांवबांध, अर्जुनी मोरगांव, सालेकसा, चिचगड, आमगांव, रजेगांव, गोरेगांव और सौंदड़ के ग्रामीण अस्पताल चिकित्सा अधीक्षकों के बिना चल रहे हैं. जबकि तिरोड़ा भी प्रभारी के आधार पर चल रहा है. उल्लेखनीय यह है कि शासकीय मेडिकल कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर के नौ पद रिक्त हैं. इन पदों पर कार्यरत प्रोफेसरों का तबादला कर दिया गया है. लेकिन सरकार ने अभी तक उनके स्थान पर दूसरे प्रोफेसरों की नियुक्ति नहीं की है. कॉलेज में पैथोलॉजी, त्वचा रोग, फार्माकोलॉजी, मानसिक रोग, बाल रोग, एक्स रे, बहरापन, नेत्र रोग विभाग के विभाग प्रमुख के पद रिक्त हैं. कुल मिलाकर यह संदेह है कि सरकार जानबूझकर गोंदिया जैसे पिछड़े जिले की ओर अनदेखी कर रहा है.